Tag Archives: साधु संत

मोह माया (लघुकथा)

बाबाजी के सामने भक्तों की भारी भीङ लगी है। बाबाजी भी खुशी-खुशी अपने भक्तों की शंकाओं का समाधान कर रहे हैं। एक भक्त ने पूछा, “बाबाजी यह मोह-माया क्या है और इससे कैसे छुटकारा पायें?”

बाबाजी प्रवचन की मुद्रा में बोले “मोह-माया एक ऐसी विष-बेल है जिसे इंसान खुद सींचता है। यह संसार, यह दुनिया यह जीवन क्षणिक है। इस जीवन का कोई भरोसा नहीं है फिर भी हम पीढियों तक के लिए संग्रह करते हैं। हमारी जिन्दगी ईश्वर-भक्ति की बजाय कागज के टुकङे कमाने में बीत रही है। यह संग्रह की प्रवृति छोङो और त्याग करना सीखो। ये रिश्ते-नाते मोहपाश के अलावा कुछ नहीं हैं जिनमें फंसकर हम अपने लक्ष्य से भटक जाते है और इसी मोह-माया में पङकर हम अपना बेशकीमती जीवन बर्बाद कर देते है। इसलिए यह सारी मोह-माया छोङकर अपने जीवन को सुकर्मों में लगाओ; ईश्वर की भक्ति में लगाओ।”

“बाबाजी, आपका इतना बङा आश्रम है; हजारों-लाखों अनुयायी हैं; रोज आश्रम में लाखों का चढावा आता है; आप हर महीने महंगी-महंगी विदेशी कारें खरीदते हैं, जिनमें आप सुन्दर-सुन्दर कन्याओं के साथ घूमते हैं। जबकि आप एक संन्यासी है। क्या यह मोह-माया नहीं हैं? क्या आप स्वंय मोह-माया से दूर हैं…..?” – एक दूसरे भक्त ने पूछा।

बाबाजी निरूत्तर.!!!
एकदम निरूत्तर भक्त का मुँह देख रहे हैं….!!!

लेखक : मेघराज रोहलण ‘मुंशी’